वीरपुर में होने जा रहे महाधिवेशन को लेकर इस कड़ाके की सर्दी में भी माहौल में गर्मी है। ये गर्माहट अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा अध्यक्ष चुनाव तक जारी रहने की उम्मीद है। अध्यक्ष चुनाव और महासभा के कामकाज को लेकर कमलापुरी समाज के लोग कई तरह के सवाल कर रहे हैं। जनता का काम है सवाल करना। अगर आप उनके उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतरेंगे...उम्मीद के लायक काम नहीं करेंगे तो, वो आपसे पूछेंगे ही और आपको जवाब देना ही होगा। जवाबदेही ली है तो जवाब तो देना ही होगा।
लेकिन कुछ प्रवक्ता टाइप लोग हैं, जो काम ना करने वाले पदाधिकारी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते रहते हैं। ये लोग उस कहावत को चरितार्थ करते हैं कि मालिक तो ठीक था *&^$#@W को परेशान देखा। अरे भाई जिसके पक्ष में आप लिख रहे हैं भगवान ने उन्हें भी जुबान दी है। उन्हें भी बोलना आता है। उन्हें भी हाथ है और उनके हाथ में भी मोबाइल है। उन्हें बोलने-लिखने दीजिए। लेकिन कुछ लोगों को तो गुलामी की मानसिकता होती है। बिना आगे-पीछे किए उनका खाना पचता ही नहीं।
अब आप देखिए जब महाधिवेशन- अध्यक्ष चुनाव से पहले आठ साल के कामकाज का हिसाब मांगा जा रहा है तो कुछ लोगों को कहना है कि महीना, तनख्वाह थोड़े मिलता है, अपना पैसा लगाकर काम कर रहे हैं। त्याग कर रहे हैं। तो क्या आपको लोगों ने हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अध्यक्ष, महामंत्री या पदाधिकारी बना दिया था। आपने खुद चुनाव लड़ा है, जीतने के लिए काफी जोर अजमाइश की है। और जब पदाधिकारी बने हैं, चुने गए हैं तो, काम तो करना पड़ेगा। जिम्मेदारी ली है तो निभानी पड़ेगी। जिसको जिम्मेदारी नहीं लेनी थी, वो नहीं लड़ा। कोई जोर जबरदस्ती थोड़े ही है। काम नहीं करना था तो, बनते ही नहीं। जब बने हैं, तो काम तो करना पड़ेगा और लोग सवाल भी करेंगे।
कई पदाधिकारी सवाल पूछने या काम का ब्योरा मांगने या उपलब्धि बताने पर उल्टा सवाल दाग देते हैं कि पहले आप बताइए कि आपने समाज के लिए क्या काम किया है। काम के बारे में ना बताने का ये गजबे बहाना है। अरे भाई, लोग सरकार से सवाल करते हैं। सरकार से काम का ब्योरा मांगते हैं। सरकार जनता से, आम लोगों से काम का हिसाब नहीं मांगती। ये उल्टी गंगा बहाने का क्या प्रयास कर रहे हैं? काम भी नहीं करेंगे और पद से चिपके भी रहेंगे! ये आगे चुने जाने या मनोनीत होने वाले पदाधिकारियों के लिए भी एक सबक है कि अगर काम ना करना है कि तो कार्यसमिति- केंद्रीय परिषद में सिर्फ नाम के लिए शामिल ना होइए। पदाधिकारी बनेंगे तो लोग सवाल करेंगे ही। और आपको जवाब देने ही होगा।
हैरानी की बात तो यह है कि आठ साल सोए रहेंगे और चुनाव आने से पहले जगेंगे और कहेंगे कि हमें लोगों का सहयोग नहीं मिल रहा है। अगर सहयोग नहीं मिल रहा था तो आठ साल क्यों पद से चिपके रहें। एक दो साल के बाद ही उसी समय पद छोड़ कर चुनाव करवा लेते और कहते कि लो भाई संभालों आप लोग। हमसे ना होने वाला। लेकिन पद से मोह इतना की चिपके भी रहेंगे। छोड़ेंगे भी नहीं। बार-बार पद पर आने की कोशिश भी करेंगे और ये भी देखेंगे कि मनोनयन इस तरह से हो कि पदाधिकारी लोग हर बात में हां से हां मिलाते रहे।
इसी सब को देखकर लोगों का महासभा से मोहभंग हो रहा है। आम लोग इसमें दिलचस्पी लेना बंद कर चुके हैं। कई प्रबुद्ध लोगों से हुई बातचीत में उन्होंने साफतौर पर महासभा से किसी भी तरह से जुड़ने से इनकार कर दिया। ये हाल तो कर दिया गया है महासभा का। कोई जुड़ना नहीं चाहता, जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं कि कुछ भी हो जाए नाम के आगे से पदाधिकारी का ठप्पा हटने ना पाए।
आपको क्या लगता है? अपना विचार नीचे कमेंट में जरूर लिखिएगा।
Sat pratishat sahi kaha apne. Sirf pad ke liye matre hain. Bigat salon se koi road map nahi hai. Sirf apna prachar karate hain Esliye es sastha se mohbhang hote jaa raha hai. Es sanstha se nahi koi social, political, constructional upliftment nahi hua hai. Apne Miyan Mithu wala Sanghtan tak simit ho gaya hai.
ReplyDeleteBalram Kumar Gupta
Mob no 8789526455
Retired Deputy Director,
Water Resources Department
Patna
अपना विचार यहां रखने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
Delete