श्रद्धांजलि: बाबूजी श्री धर्मनाथ प्रसाद जी (1936-2021)

कस्बाई जिंदगी का एक ऐसा निरक्षर  इंसान जिसने समाज के हर पहलू को स्पर्श कर एक ऐसा सामाजिक ताना-बाना तैयार किया जिसकी बुनियाद सात दशकों तक कायम रही। सुबह-सबेरे अपनी-अपनी समस्याओं और मजबूरियों को लेकर दरवाजे पर दस्तक देते लोगों के साथ बाबूजी अक्सर बनियान और अंडरवियर में हीं घर से रुखसत हो जाते।

हर तरह की समस्याओं से दो-चार होते दोपहर करीब एक बजे घर लौटते और फिर नित्य क्रिया कर्म कर भोजन करते। इसके  बाद भी लोगों के आने का सिलसिला नहीं रुकता और पुनः इनकी समस्याओं का हल करने के बाद वे रात्रि सात-आठ बजे घर वापस आते जिसमें कल की समस्याओं का निदान के लिए चर्चाएं होती थी।

बाबूजी नहीं चाहते थे कि टोले-मोहल्ले-आस-पड़ोस का कोई भी आदमी आपसी लड़ाई या जमीन जायदाद संबंधी विवाद की वजह से कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाए। ऐसे विवादों में फंसे लोगों के बीच सुलह मशविरा करवाकर उसका निदान करते थे। उनकी साख और विश्वसनीयता इस हद तक सिर चढ़कर बोलती थी कि पुलिस गिरफ्तारियां होने के बावजूद भी थानाध्यक्ष को विश्वास में लेकर लोगों को छुड़वा देते थे। समाज सेवा के इस जज्बे को तवज्जो देते हुए स्थानीय प्रशासन भी इनकी बातों को टालते नहीं थे बल्कि और सहयोग करते थे। बात उन दिनों की है जब भाप और कोयले से चलने वाली रेलगाड़ियों के मलबे बैरगनियां रेलवे-स्टेशन पर ढ़ेर में तब्दील हो जाते थे। बाबूजी दुर्गा पूजा के समय शहर के गड्ढों को भरवाने के लिए स्टेशन पर बैलगाड़ी से मलबे उठवा रहे थे। इसी दौरान वहां जीआरपी के नये-नये इंस्पेक्टर पुलिसिया अंदाज में तफ्तीश करने लगे और बाबूजी से नोक-झोंक होने लगी। बाबूजी का लिबास देखकर इंस्पेक्टर का वर्दी वाला गुरुर हावी हो गया और बात इतनी आगे बढ़ गई कि जीआरपी टीम ने बाबूजी को लॉकअप में बंद कर दिया। इस घटना की खबर पूरे बाजार में आग की तरह फैल गई। बाजार बंद हो गए।

शहर और आसपास के हजारों लोग स्टेशन की ओर दौड़ पड़े और जीआरपी के खिलाफ जमकर नारेबाजी शुरू हो गई। धीरे-धीरे नारेबाजी ने उग्र रूप धारण कर लिया और लोगों ने तोड़फोड़ करना शुरू कर दिया। जीआरपी टीम खुद अपने बचाव में  एक कमरे में बंद हो गई। लोग जीआरपी का दरवाजा तोड़ने लगे। इस उग्र भीड़ को नियंत्रित करने वाला वहां कोई नहीं था। सभी आग ही उगल रहे थे। तभी स्थानीय निवासी और सीतामढ़ी जिले के तत्कालीन जनप्रतिनिधि तथा बिहार सरकार के मंत्री पी एम अंसारी मौके पर पहुंच गए जो बाबूजी के करीबी दोस्त थे। उन्होंने उग्र भीड़ को शांत करने का भरसक प्रयास किया। हाथ जोड़कर गुजारिश भी की और कइयों को डांट-फटकार भी लगाई। बाबूजी को लॉकअप से छुड़ाया और भीड़ से वापस जाने की अपील की। माहौल शांत होने के बाद भी जीआरपी वाले शांत नहीं बैठे बल्कि बाबूजी पर तोड़फोड़ का मुकदमा दर्ज कर मामले को गोरखपुर जोन स्थानांतरित कर दिया। बैरगनियां मालगोदाम के मालबाबू रामबचन उपाध्याय जी  बाबूजी के मित्र थे और उनकी रेलवे अघिकारियों पर काफी पकड़ थी  तो अंसारी जी का सियासती कनेक्शन दिल्ली तक था। दोनों ने मिलकर इस गंभीर मामले को रफा-दफा करवा दिए। अन्यथा,इस झुठे जुर्म में बाबूजी कई सालों तक कारावास में होते।

हर तरह के आर्थिक संसाधनों-सुविधाओं के अभाव को झेलते हुए भी बाबूजी सामाजिक सरोकार के लिए सफाई अभियान में जुटे रहे। समाज में हाशिए पर जी रहे वंचित सफाईकर्मियों के साथ हर पल उनका हाथ बटाते रहे और उनकी हौसला अफजाई करते रहे। मेले, पर्व त्योहारों और किसी भी तरह के सामाजिक समारोहों में बाल्टी में पानी लेकर हर प्यासे को पानी पिलाना उन्हें सुकून देता था। हर साल आने वाली प्रलयंकारी बाढ़ में पीड़ितों के लिए मिलने वाली धनराशि से भोजन की व्यवस्था करना उनके शगल में शामिल हो गया था। बाढ़ की उफनती धारा और प्रचंड वेग में भी अपने मित्रों के साथ नाव पर सवार होकर डिब्बाबंद खाना पीड़ितों को मुहैया करवाते। बाढ़ से विस्थापित गरीब,लाचार और बेबस लोगों के लिए सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर-मोतिहारी से प्राप्त कपड़ों को बांटने का काम पूरे मनोयोग से करते। चिकित्सा, सड़क, पुल निर्माण जैसी जनसाधारण की बुनियादी सुविधाओं को लेकर होने वाले आंदोलनों, प्रदर्शनों और धरनों में शिरकत करना उनका स्वभाव बन गया था। दरअसल जनसाधारण की समस्याओं को लेकर होने वाले विद्रोह और मुखालफत को कोई भी शासक-वर्ग पसंद नहीं करता। शायद यही कारण है कि इस मुहिम में वे कई बार जेल भी गए। जेल में मिलने वाला मुफ्त राशन उन्हें नापसंद था। शायद इसीलिए घर  द्वारा भेजे जाने वाले चिड़वा, गुड़, चना और सत्तू से गुजारा करते या सीतामढी के प्रख्यात वकील जगदेव झा के यहां से आया खाना खाते। गरीब मरीजों की सहायता, कच्ची सड़कों में गड्ढे भरवाने का काम और छोटी-छोटी पुलिया का निर्माण उनके जीवन का एक  जरूरी हिस्सा बन गया था। समाज के लोगों से मिलने वाली सहयोग राशि से गरीब लड़कियों की शादी-कन्यादान और हर तरह की व्यवस्था देखने वाले बाबूजी ने कभी भी ऐसे अवसर पर किसी के घर में  खाना नहीं खाया। समाज में तमाम तरह के अंतर्विरोधों, विरोधाभासों और मतांतरों के बावजूद बाबूजी को विभिन्न राजनीतिक विचारधारा वाले लोगों, पार्टियों, जातियों और समुदायों से हर विकट परिस्थिति में भरपूर सहयोग प्राप्त होता रहा।

धन-लिप्सा, स्वार्थपरता और चारों तरफ फैले इस हाहाकारी संसार में सीमित संसाधनों और अर्थाभाव में एक आम इंसान के लिए जनसेवा का कार्य बेहद कठिन होता है। बाबूजी के इस मिशनरी कार्य में उनके बहुत सारे मित्रों ने बिना शर्त और तन-मन-धन से हर तरह की सहायता की।शहीद बंशी चाचा, स्व जगन्नाथ जी,स्व विश्वनाथ प्रीतम जी,स्व विश्वनाथ चौधरी जी,श्री रामअयोध्या प्रसाद जी,श्री हरिनारायण जी, श्री हरिहर साह जी,श्री सोनेलाल गुरूजी, स्व बिलठ ठाकुर जी,स्व सुरेंद्र सिंह जी,मो मुनीर खां जी, श्री रामअयोध्या पासवान जी,स्व विश्वनाथ राजगढ़िया जी, श्री सत्यदेव प्रसाद जी,श्री रामएकवाल राय जी बाबूजी की संघर्ष-यात्रा के सच्चे साथी थे। वे उस पीढ़ी के लोग हैं जहां जीवन को एक मुकम्मल और समग्र सोच के साथ परमार्थ के लिए जीवन को बेतकल्लुफी के चश्मे के साथ देखने का रिवाज था। न कुछ खोने का गम, न कुछ पाने की लालसा।शायद यही उनका मूल मंत्र था।

-मनोज कुमार, बैरगनियां


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