महाधिवेशन पर महाबहस: खर्च पर सवाल उठाने वाले को बताया गया कुएं का मेंढक, देखिए क्या-क्या कह रहे हैं लोग

वीरपुर में होने जा रहे अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा के महाधिवेशन को लेकर महाबहस जारी है। लोग महासभा और महाधिवेशन को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कुछ लोगों ने महाधिवेशन पर होने वाले भारी-भरकम खर्च को लेकर भी सवाल उठाए हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि

दूरदराज वाले इलाके में हो रही बैठक पर 25 से 30 लाख रुपये खर्च करना कमलापुरी समाज के लिए सही है क्या? लोगों का साफ कहना है कि महाधिवेशन अध्यक्ष चुनाव के लिए किया जा रहा है और जब अध्यक्ष के चुनाव में समाज के सभी लोगों की भागीदारी नहीं है और सिर्फ 100-125 लोगों को ही वोट देने का अधिकार है तो फिर और लोगों को बुलाकर लाखों रुपये पानी की तरह क्यों बहाए जा रहे हैं? ये चुनाव तो कार्यसमिति और केंद्रीय परिषद की बैठक बुलाकर भी किए जा सकते हैं।


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खर्च को लेकर सोशल मीडिया पर जारी बहस में लोगों ने यह भी कहा कि इससे जो लाखों रुपये की जो बचत होगी उसे समाज कल्याण के अन्य कार्यों में लगाया जा सकता है। कमलापुरी समाज की गरीब लड़कियों की शादी में योगदान कर सकते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की मदद कर सकते हैं। गरीब व्यापारियों को आर्थिक रूप में सहयोग दे सकते हैं। इसके साथ ही लोगों ने यह भी कहा है कि यही बैठक हम पटना, दिल्ली या लखनऊ जैसे शहर में कर अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर सकते थे।

खर्च को लेकर उठाए गए शिवहर के सुधीर गुप्ता जी के सवाल पर अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा कार्यसमिति/ केंद्रीय परिषद के सदस्य अशोक कुमार गुप्ता ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सवाल उठाने वालों को कुएं का मेंढक बताते हुए उन्होंने लिखा है कि "कुएं के मेंढक को दुनिया के बारे में तब तक पता नहीं चलता जब तक उन्हें उनके दायरे से बाहर नहीं निकाला जाता।" अशोक कुमार गुप्ता जी पिछले आठ साल से महासभा के पदाधिकारी हैं, लेकिन बार-बार पूछे जाने के बाद भी अन्य पदाधिकारियों की तरह कभी आठ साल की उपलब्धियों के बारे में नहीं बता सकें।

संविधान संशोधन और आम लोगों की भागीदारी को लेकर दिए गए सुझाव पर उन्होंने लिखा है कि "मंच के द्वारा आपका सुझाव भी सर आंखों पर लिया जा सकता है, बशर्ते आपको समझाने का अंदाजा भी होनी चाहिए।" इस लाइन में उन्होंने सुधार की मांग करने वाले समाज के लोगों की समझ पर ही सवाल उठा दिए हैं। वैसे आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पिछले दो साल से लोग विभिन्न मंचों पर कमलापुरी समाज की बेहतरी के लिए सुझाव पर सुझाव दिए गए, लेकिन महासभा की ओर से हर बार उसे सिरे से नकार दिया गया। कार्यसमिति- केंद्रीय परिषद की बैठक बुलाकर संविधान संशोधन तो छोड़िए उसपर विचार करने से भी साफ इनकार कर दिया गया। 

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आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि केवटी महाधिवेशन में किए गए संविधान संशोधन की जानकारी हाल तक महासभा के पदाधिकारियों तक को नहीं थी। कार्यसमिति- केंद्रीय परिषद के सदस्यों से केवटी महाधिवेशन के दौरान हुए संशोधन के बारे में जब इस बारे में पूछा गया तो तमाम पदाधिकारियों ने चुप्पी साध ली थी। 

खर्च पर उठाए गए सवाल पर अशोक कुमार गुप्ता जी कहते हैं कि "यह समाज के लोगों के मिलने और परिचय बढ़ाने का मौका होता है।" अगर समाज के लोगों में परिचय-संपर्क-संबंध बढ़ाना ही है तो आठ साल बाद महाधिवेशन होने का इंतजार क्यों? हर साल हर राज्य में एक-एक सम्मेलन क्यों नहीं कराया गया? हर साल अलग-अलग इलाके में सम्मेलन कर परिचय- आपसी संबंध, मेलजोल बढ़ाने का काम क्यों नहीं किया। इस मेलजोल बढ़ाने का ख्याल आठ साल बाद क्यों आया? फिर महाधिवेशन के दौरान मुख्य एजेंडा अध्यक्ष चुनाव होने के कारण लोगों के साथ आपका ध्यान चुनाव जीतने पर होगा या संबंध सुधारने पर!

इसके साथ ही उन्होंने यह भी लिखा है कि "यह एक-दूसरे की क्षमता को पहचानने और उस हिसाब से प्रतिभा को भी निखारने का मौका भी समझा जा सकता है।" लेकिन क्या आम लोगों को इस तरह का मौका दिया जाता है क्या? क्या इसमें आसपास के इलाके को छोड़कर कमलापुरी समाज के सभी इलाके के लोगों की अच्छी भागीदारी होती है क्या? और प्रतिभा निखारने का मौका तो तब मिलेगा जब महासभा के लोग चुनाव के दौरान कार्यसमिति- केंद्रीय परिषद के साथ अपने मनोनीत सौ- सवा सौ वोटर से बाहर निकल कर देखेंगे। उस दौरान सारा ध्यान एक-एक वोट को पकड़ कर रखने पर होता है।


खर्च को लेकर लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर ही सवाल नहीं कर रहे हैं। लोग गांव-घर में आपस की बातचीत या फिर महाधिवेशन को लेकर चंदा लेने आने वाले लोगों से भी कई तरह की बातें कर रहे हैं। कई गांव में तो लोग चंदा मांगने आए लोगों को काफी सुना दे रहे हैं। इसका जिक्र केवटी कमलापुरी समाज के संजय कुमार गुप्ता ने सोशल मीडिया पर किया भी है। उन्होंने साफ लिखा है कि "जाति के 90 प्रतिशत लोग खुश नही है। लोग जाति नाम पर तो चंदा दे देते है, पर इस प्रक्रिया से खुश नही है। जो लोग चंदा उगाही में जाते है उन लोगों को क्या-क्या सुनने पड़ते है वो तो भुक्त-भोगी ही जानते होंगें। चोर-बेइमान, स्वार्थी आदि अपमानजनक शब्द सुनना पड़ता है। इसलिए सार्थक काम हो तो अच्छा।"

खर्च वाले मुद्दे पर कहलगांव के शिव कुमार गुप्ता ने अशोक कुमार गुप्ता को जवाब देते हुए लिखा है कि "आप का लेख काफी सुंदर है पर आपने भी समय की मांग को नही समझा है। समाज का कोई भी व्यक्ति अधिवेशन कराने के पक्ष या विपक्ष में नही है। अधिवेशन तो होना ही चाहिए पर अधिवेशन से अध्यक्ष का चुनाव को हटाना जरूरी है। चुनाव एक अलग प्रक्रिया है। महाधिवेशन में समाज के गंभीर विषयों पर चर्चा और समाज में व्याप्त कुरीतियों पर व्यापक चर्चाएं हो तो समाज को ज्यादा फायदा होगा। पर अभी तक के अधिवेशनों में यह नही हो पाया है। जहां तक राजनीतिक क्षमता बढ़ाने की बात है तो संगठन में व्यापक विस्तार कर जब तक समाज के सभी वर्गों को शामिल नहीं किया जाएगा तब तक समाज की राजनैतिक पहचान दुर्लभ है।"
महासभा के पदाधिकारी अशोक कुमार गुप्ता के पोस्ट पर सनोज कुमार ने लिखा है कि "आपको नही लगता है की समय-समय पर संविधान में संशोधन होने चाहिए।" सनोज कुमार ने आगे लिखा है कि "जो 107 वर्षो से चला आ रहा है क्या हमलोग आज भी उसी पर चलते रहे क्या? और वोटिंग का जो नियम है वो हमेशा के लिए मात्र कुछ लोगो के ही हाथ में रहे क्या? जरा सोचिए और भी कई सारे बातें हैं जिसमें बदलाव की जरूरत है।"
अशोक जी के पोस्ट पर कमेंट करते हुए ईश्वर प्रसाद गुप्ता जी ने लिखा है कि "आपने समझाने की क्षमता शब्द का प्रयोग किया है आप कमलापुरी समाज के सबसे समझदार अपने को मानते है तो बताएं कि 8 वर्षों में पत्रिका के कितने अंक प्रकाशित हुए और ग्राहकों की संख्या क्या है? स्मारिका प्रकाशित होने से पहले स्मारिका प्रकाशन समिति का गठन होता है तो क्या इस बार किया गया क्या? आपको जानकारी है तो साझा करेंl ईश्वर जी ने आगे लिखा है कि संविधान की धारा पहले 11 लागु होगा या 14... ये भी बताएं कि 2015 में संरक्षक का पद निरस्त होने के बाद भी आज तक संरक्षक पद पर कोई व्यक्ति क्यों बना हुआ है।"

आज का युग डिजिटल युग है। अगर आप जमाने के हिसाब से नहीं चलेंगे तो पीछे रह जाएंगे लेकिन जब डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से महासभा के पदाधिकरियों को कोई सलाह-सुझाव दिए जाते हैं तो वे खुलेआम कहते हैं कि कुछ लोग व्हाट्सएप-व्हाट्सएप खेल रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि पदाधिकारी खुद एक-दूसरे से उसी व्हाट्सएप से संपर्क में बने रहते हैं। लेकिन उस माध्यम से मिले सलाह-सुझाव को सिरे से नकार देते हैं। ऐसे में जयनगर के अशोक कुमार गुप्ता जी द्वारा सोशल मीडिया को लेकर लिखे गए शब्द पर आपत्ति जताते हुए आरके गुप्ता ने लिखा है कि "आपके द्वारा " कंडिका 6"  में कहीं गई बातें / भाषा क्या सही है ?? आपकी भाषा "की लोग सोशल मीडिया पर गुलछरे उड़ाने...." की मैं निंदा करता हूं। आपकी ये भाषा "बकबास" करने के समान है।"

अशोक कुमार गुप्ता के पोस्ट पर उन्होंने लिखा है कि "आपको कुर्सी मिली नहीं की आपकी भी भाषा और रवैया मठाधीशों की मण्डली के समान हो गई है। इसी सोशल मीडिया से समाज को अपने संगठन में व्याप्त घोर अकर्मण्यता, साथ ही अवैध एवं गैर संवैधानिक कार्यों पर सवाल उठाने का मौका / मंच मिल रहा है और समाज जागरूक हो रहा है। और मठाधीशों को अपनी जवाब देते नहीं बन रहा है तथा मौन व्रत धारण कर बैठें हैं।"
आरके गुप्ता ने आगे लिखा है कि "समाज के आमजन का जुड़ाव अपने समाज के संगठन और इसके मठाधीशों से नहीं है। उनकी बातों को अनसुना कर अपने को भारत के राष्ट्रपति समझ रहें हैं। तो आम लोग महासभा अधिवेशन में विपरीत मौसम और परिस्थितियों में सिर्फ भीड़ लगा कर भोज- भात खाने के लिए जाएं?"

इस सब पर आपकी क्या राय है। अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा के राष्ट्रीय महाधिवेशन को लेकर आप क्या सोच रहे हैं। अपना कमेंट नीचे जरूर लिखिएगा।

4 comments:

  1. Sambidhan me sansodhan har haal me hona chahiye ,100 year purane sambidhan me samay samay par sansodhan nahi hone se isme jadata aa gayi hai jisko ssaf (cleen) karna jaruri

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  2. संविधान में संशोधन जरूरी है करण की 107 साल पुराने नियम को आज के संदर्भ में लागू करना कहीं से भी उचित नहीं है। इसमे समय-समय पर समाधान जरूरी है लेकिन कोई भी पदाधिकारी इसके लिए पहल नहीं कर रहे हैं। जाति बंधु अपना अधिकार मांगते हैं तो उन्हें कुआ का साधक और मूर्ख समझा जाता है। लगता है ये लोग ही काबिल हैं, चाणक्य के वंशज हैं

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  3. Very good post

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  4. Very good post

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