महाधिवेशन को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल- 25 से 30 लाख यूं पानी में बहा देना उचित है क्या?

अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा का महाधिवेशन वीरपुर में होने जा रहा है। वीरपुर में होने वाले महाधिवेशन को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि वीरपुर जैसे दूरदराज इलाके में हो रही बैठक में 25 से 30 लाख रुपये खर्च करना कमलापुरी समाज के लिए सही है क्या? सवाल उठाए जाने के बाद कई लोग इसके समर्थन में दिख रहे हैं। लोगों का कहना है कि सिर्फ अध्यक्ष के चुनाव के लिए 25 से 30 लाख रुपये खर्च करने का तुक क्या है?

वो भी तब जब सिर्फ सौ- सवा सौ लोगों को ही वोट देना है। लोग सवाल कर रहे हैं कि जब अध्यक्ष के चुनाव में समाज के सभी लोगों की भागीदारी नहीं है तो फिर उन लोगों को बुलाकर लाखों रुपये पानी की तरह क्यों बहाए जा रहे हैं?

लोगों का कहना है कि अध्यक्ष का चुनाव कार्यसमिति- केंद्रीय परिषद की बैठक बुलाकर किया जा सकता है। इससे जब चुनाव में 100 से 125 लोग ही आएंगे तो लाखों रुपये की जो बचत होगी उसे समाज कल्याण के अन्य कार्यों में लगाया जा सकता है। कमलापुरी समाज की गरीब लड़कियों की शादी में योगदान कर सकते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की मदद कर सकते हैं। गरीब व्यापारियों को आर्थिक रूप में सहयोग दे सकते हैं।

ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि केवटी महाधिवेशन के दौरान वोट देने वाले 60 से भी कम लोग आए थे। केवटी में वोटिंग अधिकार रखने वाले 100-125 में से आधे से भी कम लोग आए थे। जब मतदान में 100 से भी कम लोग हिस्सा लेंगे तो फिर अध्यक्ष चुनाव के बहाने महाधिवेशन के नाम पर भारी-भरकम खर्च क्यों? लोगों का तो ये भी कहना है कि दूरदराज वाले इलाके वीरपुर में वोट देने वाले पदाधिकारियों की संख्या भी केवटी महाधिवेशन के आसपास ही रहने की संभावना है। देशभर से आने वाले लोगों को इस ठंड में वीरपुर आने-जाने में परेशानी का भी सामना करना पड़ेगा। पटना- दिल्ली या कोलकाता की तरह यहां आवागमन की सुविघा भी उपलब्ध नहीं है।

लोगों का यह भी कहना है कि अगर यही बैठक पटना-दिल्ली जैसे शहर में होती तो हम हजारों की संख्या में पहुंचकर अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर सकते थे। राजनीतिक दलों को कमलापुरी समाज के लोगों की अहमियत का पता चलता लेकिन दूरदराज के इलाके में वो भी कड़ाके की ठंड के दौरान करके हम ये मौका भी खो रहे हैं।

महाधिवेशन को लेकर वीरपुर में जारी तैयारी के बीच सोशल मीडिया पर जो सवाल उठ रहे हैं। उसमें नवनियुक्त जिलाध्यक्ष भी शामिल हैं। अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा के शिवहर जिला अध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने लिखा है कि-

विचारणीय
एक बात मुझे परेशान कर रहा है, कमलापुरी वैश्य महासभा का आयोजन वीरपुर में होना तय है। तीन दिवसीय कार्यक्रम जिसमें लगभग 25 से 30 लाख तक खर्च होना है। हम बनिया है हमारा स्वभाव ही है। खर्च करने से पहले उससे होने वाले लाभ ढूंढते हैं।

अगर आपका कोई निजी स्वार्थ न हो तो आपको भी यह सवाल झकझोर देगी। एक अध्यक्ष का चुनाव और खर्च 30 लाख ???
इस रकम से 50 गरीब बच्चियों की शादी हो सकती है। खैर इस 30 लाख का मुझे कोई आउटपुट नही दिखता है, न राजनीतिक, न आर्थिक, न सामाजिक।

मगर इस मोटी रकम का एक चौथाई अगर पटना में खर्च होता तो उसका असर व्यापक होता। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तीनों रूप में। हम तालकटोरा जैसे स्टेडियम में एक दिवसीय कार्यक्रम करते। राजधानी में राजनीति के आकाओं के नाक के नीचे, उन लोगों के सामने जो हमें राजनीति भागीदारी देने में अनदेखा करते है।

चारों तरफ से लोगो को आने में सुविधा होती और इसी बीच अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति प्रदर्शन भी हो जाता।

खैर माफी के साथ आपसे करबद्ध निवेदन है की एक बार जरूर विचार करें। 30 लाख बहुत बड़ी रकम है। इसे यूं पानी में बहा देना उचित नहीं है। माना कि यह रकम किसी एक व्यक्ति का नही है मगर उन लाखों परिवार का है जो अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक-एक रुपया जोड़ कर रखते हैं।

बहुत स्वजातीय गरीब परिवार हैं जिनके खाने तक के लाले पड़ रहे है, पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है, इलाज के अभाव में समय से पहले दम तोड़ रहे हैं। उनके उत्थान के लिए सोचिए। और इस कार्यक्रम को कम से कम में निपटाने का प्रयास करिये। 🙏🙏

सुधीर गुप्ता ने एक अन्य पोस्ट में आगे लिखा है कि-

यह महासम्मेलन का कार्यक्रम सेंटर में होना चाहिए था जो पटना है। इस भीड़ का राजनीतिक फायदा मिलता सामाजिक स्तर पर हमारी पहचान बनती। लोगो को वहा पहुंचने में सुविधा होती। तीन दिन की जगह हमारा कार्यक्रम एक दिन का होता। राजनीति के आकाओं के नजर में रहते।

पैसों का सही और सार्थक खर्च होना चाहिए। किसी के पास 2000 रुपया नही है वीरपुर जाने के लिए। 500 रुपये के खर्च पर पटना जाने के लिए सबों को निवेदन करके तैयार किया जा सकता था। पुनः विचार करें 30 लाख रुपया बहुत मोटा रकम है, जिसकी उपयोगिता वीरपुर जैसे जगहों में कुछ नही है।

हम बहुत दिनों से देख रहे है सभी लोग समाज को संगठित करने का ही प्रयास कर रहे है। ग्राम सभा जैसी बाते किताबी बातें हैं जिसका कोई औचित्य नहीं है। लाभ ही समाज को एकत्रित करने का एक मात्र साधन है। जब लोगों को लाभ दिखेगा तो खुद ढूंढ के जुड़ेंगे अपने स्वजातीय बंधुओ के साथ।🙏🙏

सुधीर गुप्ता जी के पोस्ट पर शिवहर के ही संजय कुमार का कहना है कि-

कोई सुगबुगाहत नहीं होने वाली है लिखते रहिए। लोग पढ़ते रहेंगे 30, 40 लाख खर्च करके क्या हासिल कर लेगा हमारा समाज। केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए इतना खर्च करना मुनासिब नहीं है। इतने खर्चे में गांधी मैदान में बहुत बड़ा सम्मेलन किया जा सकता है जिसका असर पूरे हिंदुस्तान पर पड़ेगा। सुधीर जी के बातों से हम सहमत हैं। लेकिन कोई फायदा नहीं होने वाला है इन बातों से क्योंकि कोई सुनने वाला है ही नहीं। सब अपनी अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं इसलिए हम भी लिखना बंद कर दिए।

सुधीर गुप्ता जी के पोस्ट पर पटना से आरके गुप्ता जी लिखते हैं-

आपकी बातों में काफी दम है और समाज को इस पर विचार करना चाहिए..!!
महासभा के पदों पर विराजमान मठाधीशों की मण्डली का यह सोचा-समझा एक पूर्व नियोजित प्लान / कार्यक्रम का ये हिस्सा है।
इस पूर्व नियोजित (प्री प्लान) कार्यक्रम में ये सोच है कि पुनः दूसरी बार मठ पर येनकेन प्रकारेण किसी प्रकार से काबिज होना है।
इसी प्री प्लान कार्यक्रम में शामिल है कि सुगम यातायात / पहुंच तथा अनुकूल मौसम के विपरीत स्थितियों में महाधिवेशन का कार्यक्रम आयोजित करके समाज के कम से कम लोगों की इस कार्यक्रम में उपस्थिति हों, जिससे ये मठाधीशों की मण्डली अवैध एवं गैर संवैधानिक प्रक्रिया अपना कर बिना किसी  प्रतिरोध के काबिज हो जाए।

क्योंकि ये मण्डली के लोग ही जोकि सभी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी हैं, पिछले 20-25 वर्षों से महासभा के विभिन्न पदों पर पदासीन रहे हैं, का समाज के उत्थान और सगंठन के क्रियाकलापों में उपलब्धि शून्य (जीरो) है। इन सभी मण्डली के लोगों का एक व्यक्तिगत स्वार्थ या उद्देश्य इस विपरीत परिस्थितियों वाले स्थान, मौसम में  महाधिवेशन करवाने का एक कारण, वहां के स्थानीय लोगों में प्रभाव बनाकर राजनीति की गोटी सेट करना भी है तथा संगठन के मठाधीश की कुर्सी पर विराजमान होकर राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ने को टिकट प्राप्त किया जाए!

रही बात महाधिवेशन में खर्चे की उपयोगिता की तो अपने समाज के भोले-भाले लोगों को दिग्भ्रमित कर अपने बुरे समय के लिए संचित धन से कमलापुरी समाज के विकास / उत्थान के नाम पर चंदा रूपी उनका बहुमूल्य धन ले लिया जा रहा है। लेकिन इस का उन्हें रिटर्न में निर्धन, गरीब परिवारों को संगठन में पदासिन लोगों से कुछ भी नहीं मिल रहा है।

यहां तक कि महासभा में अनेकों समाज कल्याण एवं छात्रवृति के लिए हमारे वर्तमान एवं पूर्वजों द्वारा दान देकर कोष की व्यवस्था की गई है। पर उन  निर्धन गरीब लोगों को जानकारी ही नहीं है। यदि जानकारी रहने पर मांगे जाने पर भी समय से वितरित/उपलब्ध नहीं हो रही है। ये तो हाल बना रखा है हमारे संगठन के मठाधीशों की मण्डली ने..!!
💢और दम भरते हैं समाज के विकास और उत्थान का..!!


सोशल मीडिया पर तो इस बारे में कई लोगों में अपनी राय जाहिर की है। आप भी अपनी राय नीचे कमेंट में जाकर लिख सकते हैं।

2 comments:

  1. Yeh baat to tay hai ki mahasabha ka ayajan hi president ke chunav ke liye ho Raha hai wo bhi Matra 103 member ke dwara hona hai ,matdhan 50-60%se jyada hota nahi hai Candidate hai 3 aap andaja laga le pratek candidate ko kitna vote aayega jisko bhi 25-30 vote aayega wo

    ReplyDelete
  2. पोस्ट तो बहुत ही अच्छे ढंग से लिखा गया है। प्रश्न भी बहुत ही अच्छा किया गया हुआ है, जितनी भी जानकारी जिनके पास होता है उतनी ही बात करते हैं। करना भी उचित है, परंतु हर सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है क्या ऐसा भी सोंचा जा सकता है?
    👉 हमारे बड़े बुजुर्गों ने 108 वर्ष पहले "अखिल भारतीय कमलापुरी वैश्य महासभा अध्यक्ष का चुनाव" महाअधिवेशन के माध्यम से ही हो🌹 करने के पीछे बहुत बड़ा उद्द्येश छिपा माना भी जा सकता है। नजरिया बदलने की जरूरत है :-
    1. इस बहाने बहुत सारे स्वजातीय लोगों को एक दूसरे जगह के लोगों से परिचय और संबंध बढ़ाने का मौका भी मिलता है।
    2. बहुत सारे हजारों स्वजातीय लोगों का दर्शन भी एक सौभाग्य की बात माना जा सकता है, जो इसके अलाबे तो दुर्लभ ही माना जा सकता है।
    3. एक दूसरे की क्षमता को भी पहचानने का और उस हिसाब से अपनी प्रतिभा को भी निखारने का मौका भी समझा जा सकता है।
    4. एकता बढ़ाने का बहुत बड़ा उत्साह भी समझा जा सकता है, जिस कारण हर एक-एक गांवों/पंचायतों/शहरों और जिलों को जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
    5. मंच के द्वारा आपका सुझाव भी सर आंखों पर लिया जा सकता है, बशर्ते आपको समझाने का अंदाजा भी होनी चाहिए।
    6. राजनीति क्षमता बढ़ाने और अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत जरूरी है राजधानी में महाधिवेशन करना। लेकिन इसके लिए आपको अपनी हिम्मत बढ़ाकर आगे आने की जरूरत भी होनी चाहिए, सिर्फ सोशल मीडिया पर गुलछर्र उड़ाने और मीटिंग में आने के लिए फुर्सत नहीं निकालने से काम नहीं चलेगा।
    7. निर्धन और मेधावी छात्रवृति/अबला सहायता की जवाबदेही स्थानीय केन्द्रीय परिषद के सदस्यों के द्वारा महासभा को सूचना ही नहीं जायेगा तो लाभार्थी को लाभ महासभा कैसे दे सकती है। लाभार्थी का ज्वलंत उदाहरण "भरत कुमार (बैरगीनिया) रिजर्व बैंक रिटायर्ड ऑफिसर से संपर्क कर सकते हैं।
    8. "महाधिवेशन की फिजूल खर्ची से सैकड़ों गरीब बच्ची की शादी" वास्तव में होना संभव है। आपके नजरों में ऐसी बच्ची है क्या? अगर हां तो आपका भी दायित्व बनता है उनके लिए चंदा इकट्ठा करके उनको मदद करना और करवाना। इसके लिए आप जैसे कर्मठ साथी को अपनी कर्मठता दिखानी पड़ेगी।
    9. कुएं की मेढक को अपनी दायरा बहुत अच्छे से पता होता है की संसार मात्र इतनी बड़ी ही है, तबतक जबतक की उन्हें उस दायरे को तोड़बाने की प्रक्रिया बाढ़ के प्रकोप से या बाल्टी से नहीं निकला जा सके।
    अशोक के गुप्ता जयनगर, (पूर्व मधुबनी जिलाध्यक्ष) वर्तमान बिहार प्रदेश उपाध्यक्ष 7058649051

    ReplyDelete